GeetGazal-गीत-गज़ल
Monday, August 22, 2011
मीरा राधा श्याम
1
सखी री,मोहे नीको लागे श्याम.
मोल मिल्यै तो खरीद लेउं मैं,दैके दूनो दाम
मोहिनी मूरत नन्दलला की,दरस्न ललित ललाम राह मिल्यो वो छैल-छबीलो,लई कलाई थाम
मौं सों कहत री मस्त गुजरिया,चली कौन सों गाम
मीरां को वो गिरधर नागर,मेरो सुन्दर श्याम
सखी री मोहे नीको लागै श्याम
सखी री,मोहे नीको लागे श्याम.
मोल मिल्यै तो खरीद लेउं मैं,दैके दूनो दाम
मोहिनी मूरत नन्दलला की,दरस्न ललित ललाम राह मिल्यो वो छैल-छबीलो,लई कलाई थाम
मौं सों कहत री मस्त गुजरिया,चली कौन सों गाम
मीरां को वो गिरधर नागर,मेरो सुन्दर श्याम
सखी री मोहे नीको लागै श्याम
2
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जब तैं प्रीत श्याम सौं कीनी
तब तैं मीरां भई बांवरी,प्रेम रंग रस भीनी
तन इकतारा,मन मृदंग पै,ध्यान ताल धर दीनी
अघ औगुण सब भये पराये भांग श्याम की पीनी
राह मिल्यो वो छैल-छ्बीलो,पकड़ कलाई लीनी
मोंसो कहत री मस्त गुजरिया तू तो कला प्रवीनी
लगन लगी नन्दलाल तौं सांची हम कह दीनी
जनम-जनम की पाप चुनरिया,नाम सुमर धोय लीनी
सिमरत श्याम नाम थी सोई,जगी तैं नई नवीनी
जब तैं प्रीत श्याम तैं कीनी
जब तैं प्रीत श्याम सौं कीनी
तब तैं मीरां भई बांवरी,प्रेम रंग रस भीनी
तन इकतारा,मन मृदंग पै,ध्यान ताल धर दीनी
अघ औगुण सब भये पराये भांग श्याम की पीनी
राह मिल्यो वो छैल-छ्बीलो,पकड़ कलाई लीनी
मोंसो कहत री मस्त गुजरिया तू तो कला प्रवीनी
लगन लगी नन्दलाल तौं सांची हम कह दीनी
जनम-जनम की पाप चुनरिया,नाम सुमर धोय लीनी
सिमरत श्याम नाम थी सोई,जगी तैं नई नवीनी
जब तैं प्रीत श्याम तैं कीनी
Sunday, June 26, 2011
छंद--समाधि
छंद आनन्द का प्रतीक होता है।.
छंद का उल्लेख सबसे पहले वेदों में हुआ है। छंद से जुड़कर साधारण बातें में गति व यति का आर्विभाव होने लगता है।
गति व यति से रस उत्पन्न होता है। यह रस ही आनन्द कहलाता है।
संसार भर की सभी भाषाएं छंद में ही जीवित रह पाईं हैं- जैसे इजराइल के देश बनने से पहले हिब्रु भाषा ,दुनिया भर में बिखरे यहुदियों की प्राथना भजनो में ही बची थी।
आज देवभाषा संस्कृत भी उसी ओर जा रही है। कुछ दिनो बाद यह केवल वेद उपनिषदों, पौराणिक श्लोकों में ही बच पाएगी।
छंद, भाषा, संस्कृति, कविता या सभ्यता जितना ही पुराना है।
छंद है क्या?
आइये! देखें \
भारतीय समय गिनने की प्रकिर्या को समझने का प्रयास करने से छंद को समझने में सहायक होगा।
दस दीर्घमात्रिक शब्द बोलने पर जितना समय लगता है==== १ सासं या प्राण कहलाता है
६ प्राण=== १ पल
६० पल === १ घड़ी
६० घड़ी==== १ दिन
२.५ घड़ी====== १ घंटा === ९०० सांस या प्राण
१ मिनट== १५ सांस
छ्ंद के उच्चारण से सांस की गति एक तान हो जाती है।
मन स्थिर हो जाता है एवम् ध्यान की क्षमता पा जाता है।
ध्यान से चेतना में नवांतर हो हो जाता है और फ़िर मस्तिष्क का अणु-अणु जीवंत हो उठता है।
छंद जब अन्तर्मन से उठता है तो जीवन अर्थवान होने लगता है।
इस प्रकार छंद की पुनरावृति [ जाप ]नये अर्थ का वाहक बनकर प्रगट होती है।
छंद की पुनरावृति से मानव की नकारात्मकता, सकारात्मकता में बदलने लगती है।
इस अवस्था को ही समाधि कहा जाता है।
शरीर में प्राण व मन ही निर्णय करने वाले होते हैं।
जब मन गलत निर्णय लेता है तो प्राण [ सांस ] की गति बढ जाती है,
गुस्से व झूठ बोलते वक्त- [यही तथ्य लाई-डिक्टेटिंग मशीन का आधार है]
छंद के उपयोग से ही शरीर में सकारात्मक उर्जा उत्पन्न होती है- जो मन को नवान्तर या समाधि की अवस्था में ले जाता है।
लिपिबद्ध छंद ही मन्त्र कहलाता है। मन्त्र का शाब्दिक अर्थ है-- मन की बात
छंद मन व तन में सकारात्मक संवाद करवाता है
छंद [ मन्त्र ] के सस्वर उच्चारण से वातावरण में ऊर्जा उत्पन्न होकर वायुमंडल में फ़ैलती है।, जिससे तरंगे उत्पन्न होकर आसपास को अपने प्रभाव क्षेत्र में ले लेती हैं। ऐसा अनुभव सभी को, किसी संगीत के महफ़िल या भजन संध्या पर अकसर हुआ होगा।
छंदो के जाप से उत्पन्न ध्वनि ऊर्जा व तरंगे साफ़ अनुभव की जा सकती हैं। इस अनुभव की सतत अनूभूति ही समाधि की अवस्था कहलाती है।
य़ही नही इस अवस्था प्राप्त व्यक्ति के समीप भी इस ऊर्जा को अनुभव किया जा सकता है।
इसी वजह से संसार के सभी धर्मों में जाप का प्रचलन हुआ है
Friday, December 24, 2010
जब विरह का जोगी अलख जगाता है
जब विरह का जोगी अलख जगाता है
तन झुलसे है और मन अकुलाता है
पलकें बोझिल हो जाती हैं
सांसे थम-थम जाती हैं
धड़कन रटती नाम पिया का
सुध-बुध सारी खो जाती है
तन इकतारा राग वैरागी गाता है
नींद परायी सपन पराये
मनवा एकाकी घबराये
सांसे तसल्ली दे धड़कन को
धड़कन सांसो को समझाये
कौन भला ये बातें समझ पाता है
तन झुलसे है और मन अकुलाता है
पलकें बोझिल हो जाती हैं
सांसे थम-थम जाती हैं
धड़कन रटती नाम पिया का
सुध-बुध सारी खो जाती है
तन इकतारा राग वैरागी गाता है
नींद परायी सपन पराये
मनवा एकाकी घबराये
सांसे तसल्ली दे धड़कन को
धड़कन सांसो को समझाये
कौन भला ये बातें समझ पाता है
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