जब विरह का जोगी अलख जगाता है
तन झुलसे है और मन अकुलाता है
पलकें बोझिल हो जाती हैं
सांसे थम-थम जाती हैं
धड़कन रटती नाम पिया का
सुध-बुध सारी खो जाती है
तन इकतारा राग वैरागी गाता है
नींद परायी सपन पराये
मनवा एकाकी घबराये
सांसे तसल्ली दे धड़कन को
धड़कन सांसो को समझाये
कौन भला ये बातें समझ पाता है